लोकमान्य तिलक हिंदी भाषण/निबंध
लोकमान्य तिलक भारत को स्वतन्त्रता दिलाने वाले महापुरूषों में लोकमान्य तिलक का नाम बड़े आदर और श्रद्धा से लिया जाता है। उन्होंने ही सर्वप्रथम यह कहा था कि स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। हम इसे लेकर ही रहेंगे।
बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी नामक जिले के एक गाँव में हुआ था। उनके दादाजी केशवरावजी पेशवा राज्य में उच्च पद पर आसीन थे । अंग्रेज सरकार द्वारा पेशवा राज्य के विघटन के बाद उनकी पारिवारिक स्थिति अच्छी न थी ।
तिलक के पिता गंगाधर पंत अध्यापक थे । उन्होंने बाल गंगाधर को संस्कृत, मराठी, गणित का अच्छा ज्ञान घर पर ही करा दिया था । वे 1866 में पूना के स्कूल में भर्ती हुए । उनकी स्मरणशक्ति अदभुत थी । संस्कृत के सहस्त्रों श्लोक उन्हें कण्ठस्थ थे । अपनी निर्भीक प्रवृत्ति के कारण वे अध्यापकों से हमेशा उलझ जाया करते थे ।
1871 को 15 वर्ष की आयु में उनका विवाह तापीबाई से हो गया । 1873 में तिलक ने डेकन कॉलेज में प्रवेश ले लिया । दुर्भाग्यवश वे अनुतीर्ण हो गये । 1876 में उन्होंने प्रथम श्रेणी में बी०ए० तथा 1876 में कानून की परीक्षा पास की । एम०ए० की परीक्षा में वे दो बार अनुत्तीर्ण रहे ।
युवकों में राजनीतिक चेतना पैदा करने के लिए लोकमान्य तिलक ने मराठी भाशा में केसरी और मराठा नाम से अंग्रेजी में समाचार पत्र निकाले। इन पत्रों में आप अंग्रेजी शासन की बुराइयों को प्रकाशित करते थे। इससे आपको चार महीन की कैद हुई।
शिवाजी उत्सव और गणेष उत्सव- उन्होंने गणेष उत्सव और शिवाजी उत्सव मनाने के लिए लोगों को प्रेरणा दी। इन उत्सवों के द्वारा वे युवकों में राजनीतिक चेतना जगाना चाहते थे। उन्हें अपने लक्ष्य में आशा के अनुसार सफलता मिली।
होमरूल लीग की स्थापना- लोकमान्य तिलक के विचार कांग्रेस से नहीं मिलते थे। उनका विचार था कि कांग्रेस की ढुलमुल नीति से भारत स्वतन्त्र नहीं हो सकता। इसलिए उन्होंने श्रीमती एनीबैसैंट से मिलकर होमरूल लीग की स्थापना की। लोगों में आपके कार्यों से जागृति पैदा हो रही थी। सरकार इनके कामों से डरने लगी। वह किसी न किसी बहाने उन्हें जेल में डालने का तरीका सोचने लगी। सन 1908 में खुदीराम बोस ने एक सरकारी अफसर पर बम फेंका था। सरकार ने इसके लिए तिलक को दोषी ठहराया और उन्हें सजा देकर छः साल के लिए काले पानी भेज दिया गया। यहाँ रहकर आपने ‘गीता रहस्य’ नामक पुस्तक लिखी।
लोकमान्य तिलक महान राष्ट्रभक्त ही नहीं, वरन राजनीतिज्ञ, दार्शनिक व चिन्तक भी थे । उनकी गरमपन्थी विचारधारा ने तत्कालीन समय में तिलक युग की शुराआत की । उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक नयी दिशा दी । उनका दिया हुआ नारा ”स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है”, भारतीय स्वाभिमान और गौरव का निश्चय ही प्रेरणास्त्रोत है । अपने कार्यों के कारण वे भारतीय इतिहास में सदैव अमर रहेंगे ।
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बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी नामक जिले के एक गाँव में हुआ था। उनके दादाजी केशवरावजी पेशवा राज्य में उच्च पद पर आसीन थे । अंग्रेज सरकार द्वारा पेशवा राज्य के विघटन के बाद उनकी पारिवारिक स्थिति अच्छी न थी ।
तिलक के पिता गंगाधर पंत अध्यापक थे । उन्होंने बाल गंगाधर को संस्कृत, मराठी, गणित का अच्छा ज्ञान घर पर ही करा दिया था । वे 1866 में पूना के स्कूल में भर्ती हुए । उनकी स्मरणशक्ति अदभुत थी । संस्कृत के सहस्त्रों श्लोक उन्हें कण्ठस्थ थे । अपनी निर्भीक प्रवृत्ति के कारण वे अध्यापकों से हमेशा उलझ जाया करते थे ।
1871 को 15 वर्ष की आयु में उनका विवाह तापीबाई से हो गया । 1873 में तिलक ने डेकन कॉलेज में प्रवेश ले लिया । दुर्भाग्यवश वे अनुतीर्ण हो गये । 1876 में उन्होंने प्रथम श्रेणी में बी०ए० तथा 1876 में कानून की परीक्षा पास की । एम०ए० की परीक्षा में वे दो बार अनुत्तीर्ण रहे ।
युवकों में राजनीतिक चेतना पैदा करने के लिए लोकमान्य तिलक ने मराठी भाशा में केसरी और मराठा नाम से अंग्रेजी में समाचार पत्र निकाले। इन पत्रों में आप अंग्रेजी शासन की बुराइयों को प्रकाशित करते थे। इससे आपको चार महीन की कैद हुई।
शिवाजी उत्सव और गणेष उत्सव- उन्होंने गणेष उत्सव और शिवाजी उत्सव मनाने के लिए लोगों को प्रेरणा दी। इन उत्सवों के द्वारा वे युवकों में राजनीतिक चेतना जगाना चाहते थे। उन्हें अपने लक्ष्य में आशा के अनुसार सफलता मिली।
होमरूल लीग की स्थापना- लोकमान्य तिलक के विचार कांग्रेस से नहीं मिलते थे। उनका विचार था कि कांग्रेस की ढुलमुल नीति से भारत स्वतन्त्र नहीं हो सकता। इसलिए उन्होंने श्रीमती एनीबैसैंट से मिलकर होमरूल लीग की स्थापना की। लोगों में आपके कार्यों से जागृति पैदा हो रही थी। सरकार इनके कामों से डरने लगी। वह किसी न किसी बहाने उन्हें जेल में डालने का तरीका सोचने लगी। सन 1908 में खुदीराम बोस ने एक सरकारी अफसर पर बम फेंका था। सरकार ने इसके लिए तिलक को दोषी ठहराया और उन्हें सजा देकर छः साल के लिए काले पानी भेज दिया गया। यहाँ रहकर आपने ‘गीता रहस्य’ नामक पुस्तक लिखी।
लोकमान्य तिलक महान राष्ट्रभक्त ही नहीं, वरन राजनीतिज्ञ, दार्शनिक व चिन्तक भी थे । उनकी गरमपन्थी विचारधारा ने तत्कालीन समय में तिलक युग की शुराआत की । उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक नयी दिशा दी । उनका दिया हुआ नारा ”स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है”, भारतीय स्वाभिमान और गौरव का निश्चय ही प्रेरणास्त्रोत है । अपने कार्यों के कारण वे भारतीय इतिहास में सदैव अमर रहेंगे ।
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